- 9 Posts
- 9 Comments
***नेपाल: राहत के लिए भारत-चीन में होड़*** बीबीसी द्वारा अपने नेट संस्करण पर लगायी गया समाचार जन्हा ध्यान आकर्षित करता है वंही कई सवाल खड़े करता है और बीबीसी की निष्पक्षता को भी संदिग्ध बनाती है. यद्द्पि अंदर दी गयी सामग्री कुछ हद तक संतुलित और सही है . प्रथमत: यह प्रश्न उठता है कि भारत द्वारा पहुचाई गयी सहायता केवल चीन से बर्चस्व की लड़ाई के लिए है या मानवता की सेवा है अथवा भारत की प्राचीन परम्परा “बसुधैव कुटुम्बक ” का विस्तार है . दूसरा चीन और भारत ने नेपाल में जो भी कुछ किया वो नेपाल पर अपना बर्चस्व बढ़ने कि लिए ही किया या इनलोगों ने अपना पडोशी धर्म निभाया.
भारत के पूर्वांचल में एक कहावत है “खसी जीव संग जाइ खवैया कहँइ स्वादइ नही ” भारत द्वारा दी गयी नेपाल को सहायता स्वाभाविक है , नजदीकी पडोसी देश है . पूर्वांचल में एक और कहावत है आपदा के समय १००० किलोमीटर दूर मित्र से ज्यादा फायदा पडोशी दुसमन से होता है . भारत और नेपाल सांस्कृतिक और भौलिक सीमाओं से सीधे जुड़ा हुआ है वंही चीन हिमालय के पार दूर स्थित है . दूसरी बात, जैसा की बीबीसी ने अभी तक समाचार प्रसारित किये है और अपने नेट संस्करण पर खबरे लगायी उसके द्वारा यह कहा जा सकता है की चीन द्वारा पहुचाई गयी सहायता इस भीसण त्रासदी में ऊंट के मुह में जीरा जैसा है . अतएव दो बातें सामने उभरकर आती है या तो बीबीसी अंतर राष्ट्रीय एजेंसी होने का दवा छोङ कर क्षेत्रीय चैनल अपने को कहे या तो उसके द्वारा चीन और भारत द्वारा पहुंचे गयी नेपाल की सहायता के बारे में दी गयी जानकारी भेदभावपूर्ण और अपूर्ण है . बीबीसी को सस्ती लोकप्रियता से बचाना चाहिए और निष्पक्ष जानकारी प्रदान करनी चाहिए. एक ही घटना पर भिन्न भिन्न भाषा के प्रसारण में इतना अंतर नही आना चाहिए जिससे समाचार की अंतर्निहित भावना ही बदल जाय (भारत के मुजफरनगर के दंगो के बाद की रिपोर्टिंग में एक दिन के हिंदी और उर्दू के समाचार प्रसारण में में ऐसा ही हुआ था सौभाग्यवस उस समय मई दोनों सेवाओ का समाचार सुनता था ). बीबीसी को इस प्रकार की “नेपाल: राहत के लिए भारत-चीन में होड़” शीर्षक न लगाकर कुछ इस प्रकार से व्
भी शीर्षक लगा सकता था – नेपाल में आपदा की समय भारत चीन दोनों ने ततपरता दिखाई या नेपाल : भारत चीन दोनों ने पडोशी धर्म निभाया इत्यादि.
Read Comments