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जिस समय विश्व के अधिकांश लोग कटरपंथी अतिवादी प्रबित्तियों की तरफ बढ़ रहा था उस समय हसन रूहानी की ईरान में जीत सूखे हुए विश्व मरुभूमि में बरसात की कुछ छीटें जैसी पड़ी है
बर्तमान विश्व के लगभग सभी प्रमुख धर्मो के मानाने वालो ने अपने प्रतिनिधि अतिवादी लोगो को ही चुना है चाहे वह भारत में नरेंद्र मोदी, तुर्की में रजब तय्यिप एरदोगान या तथाकथित विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र मानवाधिकारों के हिमायती होने के दावा करने वाला देश अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत हो. सभी देश के नागरिको ने निराश ही किया है .
अतिवाद के तरफ विश्व का आकर्षण सृष्टि को कहा लेकर जायेगा ? इस बढ़ती अतिवादी सोच से किस का भला होने वाला है ? इस सोच के विस्तार का श्रेय किसको है ? क्या नरेंद्र मोदी, डोनाल्ड ट्रम्प या रजब तय्यिप एरदोगान की व्यक्तिगत नेतृव की विशेषताएं इनको शाशक के रूप में स्तापित किया या यंहा की लोगो की अतिवादी सोच के तरफ झुकाव से ऐसा संभव हो पाया या समस्या का दूसरा पहलु जो इन सबसे स्याह है वह यह की लोगो की सफलताओ का श्रेय तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेतावो की विकृत मानसिकता जो उनको सत्ता के मोह से पैदा हुआ है जिससे उनके कथनी और करनी में द्वैधता का ही परिणाम है
ऐसे समय में ईरान में उदारवादी नेता हसन रूहानी की जीत से घना अँधेरे में रौशनी की किरण जैसे दिखाई पड़ी है और आशा करत्ते है की पूरा विश्व इनका उसी रूप में स्वागत करेगा.
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